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सपना

KABHI AANA ZINDAGI
KABHI AANA ZINDAGI
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सपना


तुमने ‘अपना’ कहा

या-खुदाया

सपना ही सही

पर अच्छा आया

ख्वाब हों तो

मुमकिन है जीना भी

आज अभी अभी

समझ मैं पाया


वक़्त पर पाबंदियां

न लग पाएंगी

रोकने से साँसें

ज्यादा न हों जाएँगी

देखकर

बढती उम्र के डर को

कई बार दिल को

मैंने यूँ समझाया


बस बहुत हुआ

अब न टूटा जाये

जख्मों को ही

अब पाला जाये

दर्द बढ़ा तो

हंस दूंगा मैं

“कहो कैसे?” पूछुंगा

गम जो आया !!

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