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तुम कैसी हो?

KABHI AANA ZINDAGI
KABHI AANA ZINDAGI
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तुम कैसी हो?

कभी कभी
बड़ी देर तक
मैं उन रास्तों को ताकता रहता हूँ
जिन पर
हम तुम कभी साथ चले थे!
पर उन्ही रास्तों पर
भ्रम सा होता है एक परछाई का
हु बा हु तुमाहरे जैसी
न जाने क्यों
एक फर्क सा भी महसूस होता है
तुम में और उस परछाई में?
तुम तो खिली खिली सी
मुस्कराहट की एक परिभाषा नज़र आती थी
मगर यह परछाई जैसे
उदासी की कोई मूर्त
ज्यों दर्द की कोई आहट हो!!!


ख़त लिखना –
तुम कैसी हो???

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